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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

 

औचित्य सिद्धान्त

 

प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।

अथवा
'औचित्य सिद्धान्त' का विस्तृत विवेचन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. 'औचित्य' क्या है? आचार्य क्षेमेन्द्र ने इसे किस प्रकार परिभाषित किया है?
2. भरतमुनि दण्डी व अभिनव गुप्त के औचित्य विषयक विचार बताइए।
3. काव्य में 'औचित्य' का तात्पर्य बताइए।
अथवा
काव्य में औचित्य क्या है?

उत्तर -

 

औचित्य शब्द का अर्थ है - उचित का भाव। उचित शब्द से भाववाचक व्यञ् प्रत्यय होकर 'औचित्य' शब्द बनता है। व्यवहार, आचरण, गतिविधि, काव्य रचना आदि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में औचित्य का महत्व है। जो काम, वस्तु अथवा व्यवहार उचित नहीं होगा, उसे सहृदय भावुक क्या, मूर्ख व्यक्ति भी रुचिकर नहीं समझेगा। काव्यशास्त्र में औचित्य शब्द का अर्थ अत्यन्त व्यापक है। भाव, रस, अलंकार, रीति आदि कवि-कर्म की समस्त प्रक्रिया औचित्य के अन्तर्गत आती है। औचित्य पर विस्तारपूर्वक चर्चा सर्वप्रथम आचार्य क्षेमेन्द्र ने की है।

 

औचित्य सिद्धान्त की प्रमुख स्थापनाएँ : आचार्य क्षेमेन्द्र ने औचित्य की परिभाषा इस प्रकार दी-

उचितं प्राहुराचार्याः सहस्रं किल यस्य यत्।
उचितस्य च यो भावो तदौचित्यं प्रत्यक्षते।

( जो वस्तु अथवा तत्व किसी के निश्चय ही अनुरूप हो, उसे आचार्यों ने उचित कहा है। उचित का भाव ही औचित्य कहलाता है।)

वे औचित्य को काव्य का प्राण तत्व स्वीकार करते हैं.
'औचित्यं रस सिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम्।

इस प्रकार वे इसे रस का भी प्राण स्वीकार करते हैं। वे यह भी स्वीकार करते हैं कि 'उचित स्थान के प्रयोग के बिना अलंकारादि भी गुण-युक्त नहीं हो पाते।

 

'औचित्येन बिना रुचिं प्रतनुते, नालंकृतिर्नोगुषः।

 

क्षेमेन्द्र के मत से औचित्य के अभाव में सौन्दर्य सृष्टि अथवा सौन्दर्यानुभूति सम्भव नहीं है। स्त्री एवं पुरुष दोनों का उदाहरण देते हुए क्षेमेन्द्र ने औचित्यं की बात इस प्रकार की है-

"कण्ठे मेखलया, नितम्बफलके तारेण हारेण वा
पाणों नूपुरबन्धनेन चरणे केयूर पाशेन वा।
शौर्येण प्रणते, रिपौ करुणया, नायान्ति के हास्यताम्
औचित्येन बिना रुचिं प्रतनुते, नालंकृतिर्नो गुणः।"

औचित्य के अभाव में गुणों एवं अलंकारों की शोभाहीनता बताने के साथ क्षेमेन्द्र ने इनके उचित प्रयोग को शोभा का जनक बताया है-

"उचित स्थान-विन्यासादलं कृतिरलंकृतिः।
औचित्याक्ष्च्युता नित्यं भवन्त्येव गुणाः गुणाः ॥'

(उचित स्थान पर प्रयोग करने से अलंकार शोभा वृद्धिकारक होते हैं। इसी प्रकार औचित्य से च्युत होने वाले गुण ही वास्तव में गुण होते हैं।)

 

क्षेमेन्द्र ने औचित्य को काव्य की आत्मा क्यों स्वीकार किया? इसका भी उन्होंने उल्लेख किया है कि सभी तत्वों-रस का महत्व, अलंकार का अलंकारत्व आदि औचित्य के कारण ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन गुणों का यदि उचित रूप में विधान न हो सका तो काव्य-शोभा क्षीण हो जायेगी।

 

भरतमुनि - यद्यपि भरतमुनि ने औचित्य शब्द का नामोल्लेख नहीं किया है, पर नाटक के विवेचन में उन्होंने इसके महत्व को स्वीकार किया है। उन्होंने औचित्य के निर्णायक तत्व का उल्लेख करते हुए लोक-व्यवहार को उसका नियामक माना है, शास्त्र को नहीं। इस प्रकार के विवेचन के द्वारा भरत औचित्य के 'भावदर्शी' आचार्य सिद्ध होते हैं। उन्होंने 'नाट्यशास्त्र' में नाटक के परमतत्व रस का वर्णन औचित्य की दृष्टि से ही किया है, जिसे वे 'अनुरूपता' की अभिधा प्रदान करते हैं।"  -भारतीय आलोचनाशास्त्र डॉ. 'हीरा'

 

भामह - भामह ने भी औचित्य के स्थान पर 'सन्निवेश विशेष' शब्द का प्रयोग किया है-

"सन्निवेश विशेषस्तु दूरुक्तमपि शोभते,
नीलं पलाशि का बद्धधमन्तराले स्रजामिव।"

( संयोजन सन्निवेश अथवा विधान का तात्पर्य लोक व्यवहारानुमोदित औचित्य से ही है।) उचित संसर्ग के लिए आश्रय सौन्दर्य शब्द का प्रयोग करते हुए भामह ने इसी बात को पुनः स्पष्ट रूप से कहा है- "सुन्दरी के लोचन में लगे हुए काले अंजन के समान आश्रय के साधारण सौन्दर्य के कारण असाधु (शोभारहित ) वस्तु शोभायुक्त हो जाती है।"

 

इस प्रकार शब्दों के उचित प्रयोग की चर्चा करते हुए भामह ने औचित्य तत्व की प्रतिष्ठा की है।

 

दण्डी - इन्होंने 'औचित्य' के स्थान पर 'दोष परिहार' शब्द का प्रयोग किया है। आपने कवि कौशल को दोष परिहार का कारण माना है। दोषों की उत्पत्ति अनुचित संयोग से होती है। इस दृष्टि से भामह और दण्डी के मतों में बहुत समानता है-

"विरोधः सकलोऽप्येष कदाचित् कविकौशलात्।
उत्क्रम्य दोषगणनां गुण वीथी विगाहते।'

(कवि कौशल अर्थात् उचित तत्वों के सन्निवेश से दोष भी अपना मार्ग छोड़कर गुण का स्थान प्राप्त कर लेते हैं।)

 

इस स्थल पर 'गुण' शब्द के विषय में दण्डी ने कहा है- अत्रत्यं गुणपदम् औचित्य परम् (यहाँ गुण शब्द का अर्थ औचित्य ही है।

 

डॉ. जयवन्त मिश्र (काव्यात्मा मीमांसा) के अनुसार - "जिसके लिए जो उचित होता है, उसके विधान से गुण और जो अनुचित होता है, उसके विधान से दोष होता है। न तो कोई अपने आप में गुण और न कोई अपने-आप में दोष। गुण का मूल है - औचित्य और दोष का मूल है- अनौचित्य।"

 

उद्भट - उद्भट ने 'काव्यालंकार संग्रह' में ऊर्जस्वि अलंकार के निरूपण में औचित्य का उल्लेख किया है। उनका आशय है कि अनौचित्यपूर्ण रस-भाव आदि के प्रयोग में ऊर्जस्वि एवं उसके औचित्यपूर्ण बोध में रस, भाव, की स्थिति होगी।

 

यशोवर्मन - कन्नौज नरेश यशोवर्मन ने अपने नाटक "रामाभ्युदय" की भूमिका में औचित्य का प्रयोग किया है -

 

"औचित्यं वचसां प्रकृत्यनुगतः सर्वत्र यात्रोचिता।'

 

नाटक में वचनों का औचित्य स्वाभावानुकूल हो, पात्रो में सर्वत्र औचित्य रहे।

 

रुद्रट - रुद्रट ने औचित्य का वर्णन अधिक विस्तार से किया है।

 

" एताः प्रयत्नाधिगम्य सम्य गौचित्य मालोच्य तथार्थसंस्थतम्।"

 

उन्होंने काव्य में अनुप्रास के प्रयोग में औचित्य का विचार किया है तथा उसे ही इसका प्रधान निष्कर्ष बतलाया है। काव्य के विविध तत्वों के नियोजन में रुद्रट ने उनके औचित्यपूर्ण प्रयोग का कथन किया है। वृत्तियों का निबंधन संतुलित एवं समुचित हो, तभी सौन्दर्य की उत्पत्ति हो सकती है। (डा. 'हीरा' )

 

आनन्दवर्धन - इनका इस क्षेत्र में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। इन्होंने गद्य रचना में छन्दों के नियामक न होने और पद्य रचना में (महाकाव्य) औचित्य सम्बन्धी सभी नियमों का निर्वाह उचित बताया है-

 

यथोक्तमौचित्यमेव तस्या नियामकम्, सर्वत्र गद्य बन्धेऽपि छन्दो नियम वर्जिते।

 

इन्होंने वैसे तो रस के सभी अंगों के औचित्य की बात कही है, पर विभाव के औचित्य पर विशेष बल दिया है। औचित्य को रस का सबसे बड़ा कारण मानते हुए इन्होंने लिखा है अनौचित्यादृते नान्यत् रस भङ्गस्य कारणम्।

 

अभिनव गुप्त - इन्होंने औचित्य की काव्य की आत्मा मानने एवं काव्य में औचित्य को रस से अधिक महत्व देने का प्रबल विरोध किया। इनके विचार से प्रकाश तो रस ही है। औचित्य तो सम्बन्ध-विशेष का नाम है। ये यह अवश्य स्वीकार करते हैं कि रस, ध्वनि एवं औचित्य तीनों काव्य के नित्य तत्व हैं। रस काव्य की आत्मा है। रस ध्वनि के रूप में ही उन्मीलित होता है। औचित्य का अस्तित्व रस की सत्ता का प्रमाण है। इन्होंने कार्यौचित्य, रसौचित्य, भावौचित्य आदि के भंग के कारण काव्याभास, रसाभास, भावाभास आदि की उत्पत्ति स्वीकार की।

 

कुन्तक - कुन्तक ने वक्रोक्ति सिद्धान्त का समर्थन करते हुए औचित्य के महत्व को स्वीकार किया है। इन्होंने औचित्य के दो प्रकार माने और वृत्यौचित्य, अलंकारौचित्य रीत्यौचित्य आदि का कथन रस वर्णवक्रता के अन्तर्गत किया।

 

महिमभट्ट - ये रसवादी आचार्य थे। इन्होंने रसात्मक काव्य में अनौचित्य के स्पर्श भाग की संभावना का निषेध करते हुए औचित्य का समर्थन किया है।

 

"उन्होंने काव्य से औचित्य का अभिन्न सम्बन्ध मानते हुए रस-प्रतीत को औचित्य का ही फल माना है। इन्होंने दोषों का वर्णन औचित्य एवं अनौचित्य की दृष्टि से किया है। जब रस-प्रतीत में विघ उपस्थित हो जाये तो अनौचित्य दोष होगा। महिम भट्ट काव्य के अवच्छेदक तत्व (नित्य धर्म) के रूप में औचित्य की स्थिति स्वीकार कर उसका महत्व प्रतिपादन करते हैं।" - (डॉ. हीरा)

 

औचित्य के भेद - क्षेमेन्द्र ने औचित्य के निम्नलिखित भेद माने हैं-

पदे, वाक्ये, प्रबन्धार्थे गुणेऽअलंकारणे रसे,
क्रियायां कारके लिंगे वचने व विशेषणे।
उपसर्गे च निपाते च काले देशे कुले व्रते,
तत्वे तत्वेऽप्यभिप्राने स्वभाव सार संग्रहे।
प्रतिभायामवस्यावां विचारे नाम्नि वाशिषे,
काव्यास्यांगेषु च प्राहुरौचित्य व्यापि जीवितम्।

( पद, वाक्य, प्रबन्ध, अर्थ, गुण, अलंकार, रस, क्रिया, कारक, लिंग, वचन, विश्लेषण, उपसर्ग, निपात, देश, काल, कुलवृत्त, तत्व, स्राव, अभिप्राय, सारसंग्रह, प्रतिभा, अवस्था, विचार, नाम आशीर्वाद, काव्य इन सत्ताइस अंगों में काव्य का जीवित औचित्य व्याप्त है।)

 

वस्तुतः क्षेमेन्द्र द्वारा औचित्य का भेद-निरूपण अत्यन्त व्यापक है। डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा' के अनुसार - 'इसके अन्तर्गत काव्यशास्त्रीय अंगो रस, गुण, रीति, अलंकार, मीमांसाशास्त्र, व्याकरण तथा लोकशास्त्र को भी महत्व दिया गया है। पद एवं उसके अवयवों का विवेचन व्याकरण शास्त्रीय प्रणाली के आधार पर वाक्य निरूपण काव्योचित मीमांसाशास्त्रीय पद्धति के अनुसार, प्रबन्धार्थ गुण एवं अलंकार का काव्य शास्त्रीय दृष्टि से तथा स्वभाव एवं व्रत का विवेचन लोक- शास्त्रीय दृष्टि से किया गया है। उन्होंने काव्यात्मभूत तत्व रस की उपेक्षा नहीं की, उसे काव्य की आत्मा स्वीकार किया, पर वे औचित्य को रस का प्राण मानते हैं। इस प्रकार उनके अनुसार काव्य की आत्मा रस है और उसका प्राण या जीवन है - औचित्य।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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